STORYMIRROR

ritesh deo

Abstract

4  

ritesh deo

Abstract

मुलाकात

मुलाकात

1 min
417

एक आम सी शम को शब्-इ-हिज्र बनाया उसने 

दिलों का दर्द फैसला सुना के दुगना कर दिया उसने

वजह तो कुछ नहीं फ़क़त मजबूरियाँ है ऐसा बताया उसने

अधूरी मुलाकात को आखरी मुलाकात बनाया उसने


दहलीज़ पे खड़ा था में, आते ही तपाक से गले लगाया उसने 

देखते देखते मेरे कंधा आँसुओं से भिगाया उसने 

वजह पूछने पर अपने आँसुओं रोक लिया उसने

अधूरी मुलाकात को आखरी मुलाकात बनाया उसने


चेहरे पे उदासी ले के घंटों तक सामने बिठाया उसने

मैं पढ़ रहा था आँखों को उसकी, फिर नज़रों को झुकाया उसने 

इतने क़रीब आ कर भी बहुत दूर सा महसूस कराया उसने 

अधूरी मुलाकात को आखरी मुलाकात बनाया उसने


आंखों मई आंखें दाल फैसला सुनाया उसने

पल भर में उम्र भर का रिश्ता तोड़ दिया उसने 

खुदा बना कर चाहा था उसको, खुदा के हवाले छोड़ दिया उसने

अधूरी मुलाकात को आखरी मुलाकात बनाया उसने



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract