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ritesh deo

Abstract

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ritesh deo

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फितरत भूलने की

फितरत भूलने की

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भूल जाते हैं

गिर के गिरेबां में अपनी औकात भूल जाते हैं,

जानवर बने इंसान अपनी जात भूल जाते हैं।

पाएं तो नोच खाएं मासूमों की आबरू,

उनके घर भी हैं बहन- बेटियां ये बात भूल जाते हैं।


उड़ते हैं हवा में ज़मीं से फिर उठ के,

परिंदे तूफानों की मात भूल जाते हैं।

कुछ ज़िंदादिली लोगो की मिशाल बेशुमार है,

कौन कर गया दिल पे आघात भूल जाते हैं।


मानने लगे खुद को खुदा वाह रे इंसां,

बनाई है जिसने कायनात भूल जाते हैं।

दी जिसने ज़िन्दगी दे दिल में थोड़ी सी जगह,

उसकी वो करम - ए - ज़कात भूल जाते हैं।


खुश हैं बहुत के गरीब जो लोग हैं,

कटी कैसे फुटपाथ पे रात भूल जाते हैं।

ज़िन्दगी दी है उसने तो अच्छी ही होगी,

हस के गमों की बरसात भूल जाते हैं।


लूटा है नोचा है बेंचा जिश्मों को बाजारों में,

करके सारी के सारी खूरापात भूल जाते हैं।

वो ख़ुदा है लेगा पाई - पाई का हिसाब,

हम जो करके अपनी करामात भूल जाते हैं।


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