शरद का आगमन
शरद का आगमन
रातें ठिठुरने लगी, दिन सिकुड़ने लगे,
शरद से अलविदा ले, बादल चलने लगे।
धरा की प्यास बुझाकर घटाएँ लौट गयी,
मौसम बदल गया, दिन-रात गलने लगे।
मंद होकर हवाएँ ठंडी पड़ने लगी,
दिन की जमीं पर धूप खिलने लगी।
सारी प्रकृति शांत, विश्राम ले रही,
ज़िंदगी घरों में बंद होकर सिहरने लगी।
पहाड़ों के आंचल को बर्फ ने ढक लिया,
आदमी ने आग का सहारा पकड़ लिया।
प्रकृति के कण-कण में ठंडक समा गई,
सर्दी की ठिठुरन ने जीवन को जकड़ लिया।
पंछियों का कलरव कितना मौन हो गया,
कंपकंपाकर दिन, रात की बाँहों में सो गया।
पशु झुंड में एक-दूसरे का तन सेंकने लगे,
बारिश क्या गुजरी, शरद का आना हो गया।
