कलमकार
कलमकार
कलमकार हूँ, सच कहता हूँ,
जो कुछ है, उसको कहने की क्षमता रखता हूँ,
उद्देश्य नहीं है मेरा,
केवल काग़ज पर शब्दों को लिखना,
यथार्थ को दुनिया के पढ़ता हूँ,
फिर काग़ज पर उनको गढ़ता हूँ;
स्याही के काले दब्बों का,
जब नहीं था कोई रूप,
वह कलमकार ही होगा,
जिसने लिखा होगा दुनिया का पहला गीत,
नीरव में भी उपजा होगा उसके मन का संगीत,
भावों के गुबार लिये फिरता हूँ,
कलमकार हूँ, भावों को लिखता हूँ;
जब भी उपजी होगी ममता इस जग में,
महसूस किया होगा उसको केवल किसी कवि ने,
बस उस ममता को महसूस मैं करता हूँ,
कलकार हूँ, ममतामय शब्दों में लिखता हूँ;
खेत-खलियान, प्रकृति और किसान,
धरती से आसमान, सब में उबरता हूँ,
जहाँ न पहुँचा हो रवि, वहाँ भी विचरण करता हूँ,
कलमकार हूँ, सागर पर भी तिरता हूँ;
शहरों से गाँवों तक,
अन्धकार से छावों तक,
सब में शब्दों के रंगों को भरता हूँ,
कलमकार हूँ, मिट्टी के कण-कण में बसता हूँ;
झूठ नहीं, सच कहता हूँ,
बिन हथियारों से भी युद्ध लड़ा करता हूँ,
जिसको कह नहीं पाता हर कोई,
उसको भी शब्दों में कहने की क्षमता रखता हूँ,
कलमकार हूँ, शब्दों का ताना-बाना रचता हूँ;
मन की भावुकता के कारण,
लोगों के मन की भावुकता को पड़ लेता हूँ,
संवेदनाओं से भरा हुआ,
मन के भावों का थैला हाथ लिये रखता हूँ,
अनहद अम्बर में पंछी-सा तिरता,
लाखों मन के उद्गार लिये फिरता हूँ,
कलमकार हूँ, शब्दों में विचरण करता हूँ;
सूरज की किरणों से बादलों के राग तक,
लेखक की कलम से लाखों बार उभरता हूँ,
कलमकार हूँ, कलम को ही साथी चुनता हूँ;
हर युग में कवि बनकर रागिनी को भरता हूँ,
कलमकार हूँ, सच कहता हूँ,
जो कुछ है उसको कहने की क्षमता रखता हूँ।
