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मिली साहा

Abstract

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मिली साहा

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खुद को पाया तो क्या पाया

खुद को पाया तो क्या पाया

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दाता से फिर याचक बनकर,

जीवन पाया तो क्या पाया?

अपनी वास्तविक पहचान भुलाकर,

खुद को पाया तो क्या पाया?


व्याकुल, व्यग्र हुआ जब मन,

हताश होकर भटक रहा जब तन,

तब छल कर अपने अंतर्मन को,

मुस्कुराया तो क्या मुस्कुराया?


औरों ने जो कहा वही सुना,

जो रास्ता बताया वही चुना,

दुनिया के नक्शे कदम पर चलकर,

जिया तो क्या जिया?


जिंदगी ने जो दिया स्वीकार किया,

संघर्ष से खुद को हमेशा दूर किया,

अंत में परिस्थितियों से हारकर,

लड़ा तो क्या लड़ा?


जीवन संगीत कभी सुना नहीं,

इसके रंगों में कभी जिया नहीं,

जिंदगी की खूबसूरती से विलग होकर 

देखा तो क्या देखा?


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