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ritesh deo

Abstract

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ritesh deo

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बोल जाते

बोल जाते

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कहां पर बोलना है, और कहां पर बोल जाते हैं

जहां खामोश रहना है,वहां मुंह खोल जाते हैं


नयी नस्लों के ये बच्चे जमाने भर की सुनते हैं

अगर मां बाप कुछ बोलें, तो बच्चे बोल जाते हैं


बहुत ऊंची दुकानों में कटाते जेब सब अपनी

मगर मज़दूर मांगेगा तो सिक्के बोल जाते है


अगर मखमल करे गलती तो कोई कुछ नहीं कहता

फटी चादर की गलती हो तो सारे बोल जाते हैं


हवाओं की तबाही को सभी चुपचाप सहते हैं

चरागों से हुई गलती, तो सारे बोल जाते हैं


बनाते फिरते हैं रिश्ते ज़माने भर से अक्सर

मगर घर में ज़रूरत हो तो रिश्ते बोल जाते हैं !


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