बचपन ऐसा ही होता है
बचपन ऐसा ही होता है
जो पास में है वो नहीं चाहिए
देख दूसरों को रोता है
ईर्ष्या इसको नहीं कहेंगें
बचपन ऐसा ही होता है
पल में झगड़ा पल में जुड़ना
स्थायी कुछ नहीं होता है
कट्टी-अब्बी में ही रहता
बचपन ऐसा ही होता है
कुछ खायेंगें कुछ खोएंगें
सपने रोज़ नए बोता है
शेखचिल्ली सी नहीं है फितरत
बचपन ऐसा ही होता है
मात-पिता के अधूरे सपने
सारा जीवन ही ढोता है
ख़ुद की इच्छा पता न रहती
बचपन ऐसा ही होता है
चार दिनों की ज़िद होती है
नहीं बड़ी माँग सँजोता है
हैसियत को समझता अपनी
बचपन ऐसा ही होता है
घर से बाहर जाना चाहे
उसे पता क्या इकलौता है
बात समझने की है यारों
बचपन ऐसा ही होता है।
