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Manju Saraf

Abstract

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Manju Saraf

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नदी की आत्मकथा

नदी की आत्मकथा

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हाँ मैं नदी,

पानी की बहती धारा कहे कोई मुझे,

कोई गंगा या यमुना,

कल- कल करती बहती निर्बाध गति से,

ना बन्ध पाऊं मैं कहीं,


मेरी और नारी तुम्हारी,

इस जगत में एक सी ही है हस्ती,

दोनों सहते अपमान,

एक नारी हमेशा सहती पर,


लोगों को देती जीवन,

एक मैं लोगों को देती मुक्ति,

जल का मेरे करते लोग कभी आचमन,

कभी जल में डालते गन्दगी,


समझे न कभी वो मैं ही देती उनको ज़िन्दगी

हाँ मैं ही तो देती उन्हें ज़िन्दगी।


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