घर पर रहकर मैंने ये जाना है
घर पर रहकर मैंने ये जाना है
मैं घर पर हूँ
हाँ भई लॉक डाउन है मैं घर पर ही हूँ
बिस्तर पर लेटा, हाथ में पत्नी दे रही चाय मुझे
कितना सुख है मुझे
दिन भर मैं कर रहा आराम और वो
चक्करघिन्नी सी सबके पीछे घूमती
कभी बच्चों की फरमाइश पूरी करती
कभी मेरे बूढ़े माता पिता की सेवा करते
उसके हाथ थकते नहीं ,
उसके पैर कभी रुकते नहीं ,
बस, सुबह की एक प्याली चाय
वह पीती है आराम से
क्योंकि वह बहुत सुबह उठ जाती है
चाहे कितनी रात को सोए
पर उसका नियम कभी टूट नही पाता
माँ आज कुछ अच्छा बनाना
एक फरमाइश उछली बच्चों की तरफ से
बेटा आज दलिया नहीं ये मेरे
माता पिता कह रहे
और तुम भी बताओ जी
तुम्हें क्या खाने का मन है
मैंने दीर्घ दृष्टि उस पर डाली और कहा
जो तुम्हारे खाने का मन हो
मेरा मन मेरा मन कहां है
वह बोली बरसों पहले मन छोड़ आई
मैं अपने मायके में
अब सिर्फ सबके मन से मेरा मन चलता है
हाथ पकड़ उसका मैंने बिठाया उसे
और कहा आज से इस घर पर
तुम्हारे मन का चलेगा
तुम होम मैनेजर हो पहले
तुम्हारी पसन्द फिर सबकी पसन्द को
तवज्जो दी जाएगी ,
घर पर रहकर मैंने उसका दुख दर्द जाना है
उसकी अहमियत हमसे नहीं
हमारी उससे है ये पहचाना है ।।
