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Kamlesh Ahuja

Abstract

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Kamlesh Ahuja

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नदी की आत्मकथा

नदी की आत्मकथा

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मैं नदी, पहाड़ों से निकलती हूँ,

जमीन पर कल कल बहती हूँ।


ना ही रुकती हूँ,न कभी ठहरती,

हर पल निरंतर चलती रहती हूँ

दिखती हूँ चंचल और मतवाली,

भीतर गंभीरता समाए रखती हूँ।


कभी चट्टानों से मैं टकराती,

तो कभी तूफानों से लड़ती हूँ।

जितना बँधन में बाँधोगे मुझे,

उतना ही मैं,और मचलती हूँ।


मैला जो करेगा मेरा दामन,

उसको न कभी मैं बख्शती हूँ।,

न करो पर्यावरण को दूषित,

इंसानों से गुजारिश करती हूँ।


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