STORYMIRROR

Vidya Sharma

Abstract

3  

Vidya Sharma

Abstract

मैं गंगा

मैं गंगा

1 min
281

मैं गंगा चली देवलोक से,

जब इतराती इठलाती,

महादेव ने मुझे संभाला,

अपनी जटा में मुझे बसाया,

मेरे वेग को राह दिखाया।


मेरी अमृतधारा से,

पूर्वजों का करने उद्धार,

घोर तपस्या करें भगीरथ,

ब्रह्मा से मुझको मांग लिया।


कितनी सुंदर कितनी निर्मल,

तब मैं धरती पर बहती थी,

आज मलिन मुझसे ना कोई,

भूले सब ना सुध ले कोई।


पापमोचनी में सुरसरि,

आज स्वयं पर रोती हूं,

मेरा अस्तित्व संकट में है,

क्या कोई भगीरथ आएगा।


इसी तरह जो तुम सब,

करते रहोगे,

मेरी अनदेखी मेरा अपमान,

छोड़ धरती वापस जाऊंगी,

सूना रह जाएगा यह संसार।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract