दुख का सत्कार
दुख का सत्कार
दुख का मत तिरस्कार करो ,
दुख का भी सब सत्कार करो ।
जीवन में जब सब आते हैं उसकी मर्जी से ,
फिर दुख का, क्या है दोष कहो ।
दुख नहीं समय विलाप का,
यह पर्व है मन मंथन का ।
दुख संभावनाओं का द्वार है,
तनिक रुक कर स्वयं के विचार का ।
दुख पड़ाव है आत्मा के विश्राम का,
चेतना के स्नान का ।
तभी तो कुंती ,कृष्ण से,
वरदान दुख का मांगती है ।
दुख में ही हम स्वयं को पाते हैं,
अपने पराए का भेद जानते हैं ।
दुख में बहती अश्रु धारा,
मन दर्पण को धोती है ।
ना हो प्रलय तो, सृजन वैभव हीन है,
हे जग ! सुन सुख तेरा ,दुख के अधीन है ।