मैं नदी हूं
मैं नदी हूं
कहीं तेज प्रवाह से
कही कलकल बहती जाती हूं
मैं सब की प्यास बुझाती हूं
कोई कहता सरिता कोई
नदी कहीं तरंगिणी कहलाती हूँ
कोई करता सिंचाई मुझसे मुझे पर
तैरता कोई कई जगह में पूजी जाती हूं
मैं सब की प्यास बुझाती हूं
बढ़ाती में शोभा शहरों की तो
कहीं रुक कर डैम पर बिजली बन कर
रोशनी से लाती हूं
मैं कलकल बहती जाती हूं
मैं सब की प्यास बुझाती हूं
इतना काम में आने के बाद भी
करता यह इंसान गंदा मुझे
मैं मन ही मन पस्ताती आती हूं
कहीं तेज प्रवाह की तो
कहीं कलकल बहती जाती हूं
मैं नदी हूं मैं सब की प्यास बुझाती हूं।