अपना अस्तित्व मिटाकर, सम्पूर्णता प्राप्त करती हूँ। अपना अस्तित्व मिटाकर, सम्पूर्णता प्राप्त करती हूँ।
कहीं कलकल बहती जाती हूं मैं नदी हूं मैं सब की प्यास बुझाती हूं। कहीं कलकल बहती जाती हूं मैं नदी हूं मैं सब की प्यास बुझाती हूं।
बीती रात के बाद दिन आता ही है भूल को भूल फिर सवेरा छाता ही है। बीती रात के बाद दिन आता ही है भूल को भूल फिर सवेरा छाता ही है।
पर्वतों की ऊंची ऊंची चोटियां बर्फ का दुशाला पहने खड़ी है। पर्वतों की ऊंची ऊंची चोटियां बर्फ का दुशाला पहने खड़ी है।
कलकल गुुुुनगुन करती माँ गंगा के तट पर जब मानव मन निश्चल आता है।। कलकल गुुुुनगुन करती माँ गंगा के तट पर जब मानव मन निश्चल आता है।।
कलकल छलछल करती तुम अपने में समाती निर्माल्य हो कलकल छलछल करती तुम अपने में समाती निर्माल्य हो