कहीं कलकल बहती जाती हूं मैं नदी हूं मैं सब की प्यास बुझाती हूं। कहीं कलकल बहती जाती हूं मैं नदी हूं मैं सब की प्यास बुझाती हूं।
हर तरफ होगा पानी पर पानी को तरस जाओगे ! हर तरफ होगा पानी पर पानी को तरस जाओगे !
कोई रच नहीं सकता आपके लिये षडयंत्र। कोई रच नहीं सकता आपके लिये षडयंत्र।
पर हम सब मिल कर अपने वतन को एक मुकम्मल हिंदुस्तान करेंगें पर हम सब मिल कर अपने वतन को एक मुकम्मल हिंदुस्तान करेंगें
रहते थे कभी पवित्र बंधन के भी चर्चे आजकल इश्क़ अंधा कम गंदा ज्यादा हो गया है। रहते थे कभी पवित्र बंधन के भी चर्चे आजकल इश्क़ अंधा कम गंदा ज्यादा हो गया है।