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नदी

नदी

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आज फिर से रोती सिसकती नदी

देखती रह गयी उनसबकी राह

जो कभी उसके साफजल को

पीने आया करते थे !


जिनकी प्यास वो खुशी खुशी

बुझाया करती थी !

बहुत दुखी है नदी अब कोई 

नहीं आता पास उसके

क्योंकि सब कह रहे है 

वो गंदी हो गयी है जल विषैला हो गया है !


सुनकर सब की बातें है सोच रही वो

जाने कौन थे वो लोग 

जिसने उसे गंदा कर दिया 

उसके जल को विषैला कर दिया !


क्या ये वही लोग तो नहीं जो सुबह

अपनी प्यास बुझाने आते थे 

फिर इधर उधर देख कभी थैले में तो

कभी बोरे में कचरा गिराने आते थे !


सब देखती थी नदी पर

बेबस थी क्योंकि वो नदी थी 

जो बह तो सकती थी पर

कुछ कह न सकती थी


जब जब खुद में सबको

कचरा गिराते देखती थी वो

जोर से चीखना चाहती थी 

कहना चाहती थी

सुनो कचरा गिरा कर तुम

मुझे गंदा तो कर रहे हो


जल विषैला कर तो रहे हो 

पर ऐसा करके तुम अपने ही पैरों पर 

कुल्हाड़ी मार रहे हो !

क्योंकि गंदी जो मैं हुई तो

प्यासे तुम रह जाओगे 

हर तरफ होगा पानी

पर पानी को तरस जाओगे !


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