Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Inspirational

बहिन

बहिन

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जिनके यहां पर होती बहिन है

वो लोग उत्सव मनाते हर दिन है

तीज,राखी,होली,दीपावली,आदि

सब त्योहार अधूरे बहिन बिन है


साखी जिनके घर होती बेटियां है

वहां खुशियां होती अनगिनित है

कद्र बहिनों की ज़रा उनको पूंछो

सूनी होती कलाई,राखी के दिन है


उन्हें रो-रोकर बहुत याद आती है

खास हमारी होती कोई बहिन है

पूजा थाली या कोई कार्य पवित्र है

सर्वत्र शगुन डाली होती बहिन है


जिनके यहां पर होती बहिन है

वो लोग उत्सव मनाते हरदिन है

पर आजकल बेटे की चाहत में,  

बेटियां मारी जा रही दिनोंदिन है


गर यही हाल रहे, लतो मुमकिन है

कलाई सुनी रह जायेगी,एकदिन है

हरपर्व की वहां होती रौनक फीकी है,

जहां पर न होती कोई बहिन-बेटी है


एक बहिन होती सच्ची मित्र है

पूरे परिवार में फैलाती,वो इत्र है

जब मां का बाहर होता चित्र है

तब मां जैसे निभाती,वो चरित्र है


लिंग भेद न करेंगे,हम कुलीन है

ले संकल्प,राखी के पवित्र दिन है

अमीर-गरीब का भेद मिटा,बांधेंगे

भेदभावमुक्त से राखी इसदिन है


हिंद की बड़ी पवित्र परम्परा है

विश्व मानते परिवार सुनहरा है

हर स्त्री मानते अपनी बहिन है

इस रक्षाबंधन ले,प्रण पवित्र है


हर स्त्री की हम नर रक्षा करेंगे,

हर स्त्री में देखेंगे,अपनी बहिन है

मां के दिव्य रूप का,वो चरित्र है

हरदिन खुशियां,जहां हो बहिन है



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