आधुनिक रिश्ते
आधुनिक रिश्ते
रिश्ते अपनी जगह व्यवस्थित
निभाने वाले बदल गए
भावनाओं में जो जुड़ते पहले
अब स्वार्थ में आकर बदल गए।।
वक्त बदला, उलझे रिश्ते
अशांति में दिन गुजर गए
सीधे-साधे गालियां खाते
ढोंगी बच कर निकल गए।।
गरीब का कोई सगा न भैया
सिद्ध, अमीर बेगुनाह होते गए
कोई मरता कर्ज में दबकर
कहीं करोड़ों के कर्ज माफ होते गए।।
रोटी, कपड़ा और मकान के सपने
जहन से लोगों के उतर गए
व्यापार-धंधे टप्प पड़े सब
सरकार के टैक्स सब बढ़ते गए।।
धर्म की खाई और गहरी होती
भेद, अमीर-गरीब में बढ़ते गए
प्रेमभाव अब लाए कहां से
जज्बात दिलों से मरते गए।।
ईमान का सफर अब टेढ़ी खीर है
इम्तिहान कर पग पर होते गए
काबिलीयत की बात कौन करे अब
इंसान रुपयों में बिकने लगे।।
समस्याएं हर दिन बढ़ती जाती
समाधान रास्ता भटक गए
पारिवारिक मुद्दे राजनीतिक है अब
स्वार्थ में क्यूं लोग अंधे हो गए।।