नित लिखते हो एक कहानी
नित लिखते हो एक कहानी
तुम लिखते हो गुलमोहर को और लिखते हो रात की रानी,
तीजे पहर के राजा हो तुम नित लिखते हो एक कहानी।
कोयलों की सुर तुम लिखते हो और मल्हारों के गीत भी,
प्रेम में नित मनुहार हो लिखते और लिखते हो मौन प्रीत भी।
पारिजात सी एक लड़की पर सात सुरों का सरगम लिखते,
पढ़ी लिपियां कितने तुमने सब में प्रेम एक से दिखते।
कल्पनाओं के स्याही से तुम लिखते हो अवसाद हमारे,
सच ! कहती हूं तुम सा अबतक देखा नहीं कोई भी प्यारे।
प्रेम के सारे मर्म जानते हर एक भाव को लिखते तुम हो,
कहा से लाते शब्द ढूंढकर इन शब्दों में दिखते तुम हो।
कितनी लिपियां समझी तुमने पढ़ा व्याकरण और भाषाएं,
कत्थई आंखों में झांक कर तुमने संजोया आशाएं।
रश्मिरथ पर बैठकर तुमने कर ली परिक्रमा ख्वाबों की,
बरसी खूब है कत्थई आंखें शिवासमुंद्रम की बूंद बूंद सी।
