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Ashish Rahangdale

Abstract

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Ashish Rahangdale

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फिर गर्मी का मौसम आया

फिर गर्मी का मौसम आया

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दिन गिनते थे हम इंतजार करते थे हम कब तुम आओगी ?

 कब खुशियों का थैला भर कर लाओगी ?

अरे ! इंतजार अब हुआ खत्म।

आमरई ने अब बौरों का ताज उतार दिया नन्हे नन्हे आमों झांकना अब शुरू कर दिया अरे! यह क्या अब तो नटखट आम झूलने भी लगे हैं और पृथ्वी को छूने की असफल कोशिश भी करने लगे हैं।

 परीक्षाएं अब हो गई है खत्म, आमरई अब छोड़ रही है सुगंध,

 रवि की किरणें बढ़ा रही हैं तपन।

 बढ़ती तपन में धकेल दिया हमें घरों के भीतर। कोलाहल होता है घरों में दिन भर तो डालियों में बैठकर पंछी चहकते हैं दिनभर।

सकोरा रखा है हमने छत पर पानी भर कर देखते हैं हम हर दिन पंछियों को दीवारों में छिपकर।

 आइसक्रीम का भी मौसम आया है घंटी बजा बजाकर आइसक्रीम वाला ललचा रहा है; दबे पांव हम दरवाजा खोलकर खरीदकर खाते हैं आइसक्रीम और उछलते कूदते हैं दिनभर।

 सुबह की तपन भले ही चुभती हो ,शीतल रात चुभन को मरहम लगाती है।

अब छत के आंगन पर लगने लगा है बिस्तर रात में अब लगता है बतियाने में ही बीत जाएंगी राते सारी। 

रात को चांदनीयों के साथ में हम खुले आसमान में बतियाते हैं दादी नानी की कहानियां कभी हम उन्हें सुनाते हैं तो कभी खुले आसमान के संसार में खो जाते हैं हम।

नानी के घर जाने की अब है बारी आई नानी ने रखा है टोकरी भर भर के आम अब उन्हें खाने की बारी आई।


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