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Satyendra Gupta

Abstract

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Satyendra Gupta

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खुशी

खुशी

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रंग हो अकेला, कोई हैसियत नहीं उसका

हो जाए गर साथ, है इन्द्रधनुष बन जाते

साथ का है महत्व, बड़े काम भी हो जाते

कलम की औकात क्या जो कुछ लिख दे,

वो तो लेखक है जो है कुछ भी लिख जाते।


मनुष्य की नही औकात, हर किसी को रखे खुश

जो रख पाए अपने को खुश, सच्चे आत्मा कहलाते

किसी को खुशी न दे सको, दुःखी भी मत करो

कोई मिल जाए दुःखी, उसे रास्ता दिखाओ सही

खुशी मिलती है ऐसे ही, जब किसी को खुशी दे पाते।


गैरों से ज्यादा, दुःखी करते हैं अपने

गैरों से ज्यादा, जहर उगलते हैं अपने

नहीं पता, इतने जहर आते है कहां से

नहीं पता, इतनी निष्ठुरता लाते हैं कहां से

गैरों से ज्यादा, जलते है अपने

नहीं पता, इतनी जलन लाते हैं कहां से।


हम भी बदल सकते, जमाना भी हैं बदल सकता

गर सीख जाए दूसरो की खुशी से खुश होना

गर सीख जाए अच्छे कर्मों को करना

गर सीख जाए, रिश्तों को निभाना

गर सीख जाए, मतलबी शब्द को मिटाना

हमारी जिंदगी चार दिन की, भेद भाव को मिटाना

हर किसी से मिलो गले, गिले शिकवे मत रखना।


काश ! हर कोई ये जान पाता

दूसरो को देने से खुशी, अपना हृदय खुश हो जाता

काश! हर कोई ये जान पाता

दूसरों को किया गया मदद, खुद के लिए बेकार नहीं जाता

अच्छा बनना मुश्किल हैं बहुत, लेकिन सुकून है मिल जाता

अच्छा बनना मुश्किल हैं बहुत, लेकिन सुकून हैं मिल जाता।


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