उत्तरकाशी सुरंग
उत्तरकाशी सुरंग
थकना हारना भारत ने नही सीखा है
हर बाधा को अपनी बुद्धि से ही जीता है
घबराना नही, थक बैठ जाना नहीं
दुनिया को बतलाते और सिखलाते है
यूक्रेन से हम बच्चो को लेकर आ जाते है
बहादुरी को हमने स्वर्ण अक्षरों में लिखा है
थकना हारना भारत ने नही सीखा है।
उत्तरकाशी सुरंग की बात नही पुरानी है
हमारे मजदूरों की फसने की ये कहानी है
सोचो उन परिवारों बे क्या बीत रही होगी
दुबारा उन्हे देखने की आंखे तड़प रही होगी
किसी का पिता, किसी का भाई,
किसी का पति, किसी का जमाई
क्या गुजर रहे होंगे उनके दिलों पे
ना जाने सभी के दिलों पे क्या क्या बिता है
थकना, हारना भारत ने नही सीखा है।
फसे मजदूरों पे भी क्या बीत रही होगी
अपने आपको दिलासा कैसे मिल रही होगी
अपने परिवार को याद कर रहे होंगे
क्या मेरे बच्चे भर पेट खा रहे होंगे
पत्नी कैसे समझाएगी बच्चों को
पत्नी को कौन समझाता होगा
पिताजी भी हार्ड के रोगी है
उनको भी कौन दिलासा दिलाता होगा
नही पता किस्मत में क्या क्या लिखा है
थकना हारना भारत ने नही सीखा है।
काफी मुश्किलों के बाद वो पल आ ही गए
सारे मजदूर सुरंग से बाहर निकल ही गए
सभी भारतवासी जैसे खुश हो गए थे
आंखों में थे आंसू, जो खुशी से बह रहे थे
मजदूर थे जो अपने परिवार से मिल रहे थे
करत करत अभ्यास के जड़मति हॉट सुजान
रसरी आवत जात है, सील पर परत निशान
ये दोहा चरितार्थ थे जिन्होंने लिखा है
थकना हारना भारत ने नही सीखा है।