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Shatakshi Sarswat

Inspirational

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Shatakshi Sarswat

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जीवन रुपी सागर

जीवन रुपी सागर

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जीवन रुपी सागर में अब बह चला है मन,

आगे कुछ क्या ही कहूँ,

जानत हैं हर विद्वान,

कि जीवन रुपी सागर में बहना नहीं है आसान।

भौतिकता से परे है ये जीवन,

अलौकिक शक्तियों के है पास,

सफ़ल वही मनुष्य है इस जग में,

जो लगा ले थोड़ा भगवन में भी ध्यान,

पर कलयुग कि माया है ये,

जहा मनुष्य ही बन बैठे है दानव,

अपने पाने कि लालसा में,

भुल रहे लहरना मानवता का परचम।

माट्टी में मिल जाना है देह को एक दिन,

तो काहें करता है मेरा-मेरा तू,

क्या तेरा क्या मेरा इस जग में,

सब काल्पनिक माया का ही तो ये है जाल।

है तो सिर्फ भगवन के प्रेम का सागर,

आ अब बह चले उस सागर में मिलकर हम-तुम।


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