प्रकृति एक वरदान
प्रकृति एक वरदान
दिन को उजाला करता है सूरज
रात को बत्ती बन जाते हैं चांद तारे
पेड़ पौधे फल और फूल
ये सब है हमारे जीने के सहारे
हर एक तत्व का अपना है अंदाज
न कम न ज्यादा, न कोई ब्याज
बस देना ही है काम इनका
प्रकृति है नाम जिनका
उम्मीद तो इंसान की फितरत में हैं
लालच का पौधा जो बोता है
हरियाली को उजाड कर
बनाता है अपने ख्वाबों का मकान
और फिर प्रकृती से गुज़ारिश करता है
के बरसो रे मेघा, बरसो रे मेघा
हमें तो चंद ही सालों के जीवन का है वरदान
अनंत वषों से है यहांं ये गुलिस्तान
बंजर ज़मीन को उपजाऊ बना दे तो हम माने
खेत खलिहान को सींचे तो हम जाने
क्या अपना है जो लेकर जाना है
इंसान है, इनसानियत के अच्छे कर्म को छोड़ जाना है।
