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Madhu Gupta "अपराजिता"

Inspirational

4.5  

Madhu Gupta "अपराजिता"

Inspirational

काग़ज़ कलम और स्याही

काग़ज़ कलम और स्याही

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लिखने बैठी हूं जो मैं लेकर कलम और कागज को । 

 पूछ रही हूं उनसे ही उनके होने के अस्तित्व को ।। 

 हंस कर बोला कलम तब, बिन काग़ज़ एक सामान हूं मैं । 

 कागज बोला बिन कलम निरर्थक और असहाय हूं मैं ।। 


सुनकर उन दोनों की बातों को, हो गई हूं थोड़ी असहज सी मैं

इक दूजे का मेल है ऐसा, जैसे प्यासा और पानी का ।। 

जब मिल जाते हैं दोनों वो, रच देते इक इतिहास नया। 

कौन कितना उपयोगी किसको, यह कहना है मुश्किल बड़ा।। 


स्याही का स्थान अनोखा, इस दोनों के मध्य में। 

अनुपम शब्दों को गढ़ डाला, दे कर संगत दोनों को।। 

मिटा दी दूरियां बीच में उनकी, लिख कर भावों और जज़्बातों को।

रंग ना देती स्याही यदि, कलम कैसे उकेरती, दुनिया की कही अनकही बातों को।।


मिटा दी हस्ती उसने अपनी, पर दोनों को एक ही सांचे में ढाल दिया । 

 कलम और कागज जब जब मिलते, स्याही ढलती तब अक्षरों को ।। 

सुरूर में आ जाती मतवाली, जब देखती स्वर्ण मणि अक्षरों को । 

रौब से कहती, होते नहीं तुम पूर्ण कभी भी, यदि ना होती मैं इस कलम में।। 



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