माँ के लड़खड़ाते अक्षरों में! पर प्रेम अथाह था, माँ के लड़खड़ाते अक्षरों में! पर प्रेम अथाह था,
उस किताब का हर पन्ना और हर अक्षर भी मैं ही हूँ... और किताब का शीर्षक भी तो मैं ही हूँ। उस किताब का हर पन्ना और हर अक्षर भी मैं ही हूँ... और किताब का शीर्षक भी तो मै...