माँ के लड़खड़ाते अक्षरों में! पर प्रेम अथाह था, माँ के लड़खड़ाते अक्षरों में! पर प्रेम अथाह था,
प्रकृति ने श्रृंगार रचा, तब संस्कृति ने श्रृंगार रचा। शुचिता ने श्रृंगार रचा, तब कविता ने श्रृंगा... प्रकृति ने श्रृंगार रचा, तब संस्कृति ने श्रृंगार रचा। शुचिता ने श्रृंगार रचा, ...