लो आ गया बसंत
लो आ गया बसंत
लो आने लगा बसंत है
परदेशवा से लौट कर,
लो आने लगा कंत है।
बिरहन के बिरह का,
लो होने लगा अंत है।।
कामनी की कामना को,
प्रेम की पिपासना को।
मिटाने के खातिर ही,
तो आने लगा बसंत है।।
खेतों में हरियाली देख,
झूमती हर डाली देख।
गालों की ये लाली देख,
चाल मतवाली देख।।
देख इक नव बाला को,
भूल गया वो माला को।
राधे राधे नाम को ही,
आज रटने लगा संत है।
कामनी की कामना............
मन की ये हिलोर देख,
तनु मा भी हिलोर उठी।
कान्हा से मिलन खातिर,
जमुना भी हिलोर उठी।।
पवन भी हिलोर उठा,
अरु ये सागर हिलोर उठा।
इनकी हिलोरों का जी,
लो ना आज कोई अंत है।।
कामनी की कामना...............
मयूरी के लिये नाचे मोर,
चातकी के लिये चकोर।
रजनी के संग नाचे भोर,
किशोरी के लिये किशोर।।
हिलमिल सब नाच रहे,
खिल खिल सब नाच रहे।
भूल गये निज धर्म पंथ,
बस दिखे ये प्रेम पंत है।।
कामनी की कामना................
प्रकृति ने श्रृंगार रचा,
तब संस्कृति ने श्रृंगार रचा।
शुचिता ने श्रृंगार रचा,
तब कविता ने श्रृंगार रचा।।
श्रृंगारित हर नर नारी,
श्रृंगारित है यह धरा सारी।
श्रृंगार करके सृष्टि आज,
दिखती ये रूपवंत है।।
कामनी की कामना................
कलियों में है प्रेम प्यास,
गलियों में है प्रेम प्यास।
पैगंबर में भी प्रेम प्यास,
बलियों में भी है तलाश।।
प्रेम ही प्रेम दिख रहा है,
कवि प्रेम लिख रहा है।
पारस जिसे खोजता था,
वो प्रेम आज ज्वलंत है।।
कामनी की कामना.................

