"कोहरा"
"कोहरा"


आकर पल में घेर ले ऐसे बनाकर दिलबर सा घना यह कोहरा।
खेले आंख मिचोली धूप के संग मनचला कभी यहाँ वहाँ ये कोहरा।।
हर बिल्डिंग हर घर को घेरे जैसे हो राज उसी का सब पे गहरा।
सड़कों पर झट कर देता उजियारे में भी घोर सफेद अंधेरा।।
दिल मसोस कर रह जाती धूप देखकर रूप कोहरे का बर्फीला।
उड़े हवा के संग ऐसे की पकड़ ना पाए जादूगर हो कितना भी हो अलबेला।।
जब-जब गुस्साए धूप भर ले अपने आँचल में हटीला कोहरा।
हो जाता छू मंतर तब, अगली सुबह आने का फिर जश्न मनाता ये कोहरा।।
चलता रहता सर्दियों भर दोनों का संगम बड़ा ही रंग-रंगीला।
आ कर बीच हवा कर देती दोनों का प्रेम कसैला।।