हिफाजत ऐ मुल्क
हिफाजत ऐ मुल्क
दुग्ध की तरह सफेद बर्फ में, युँ ही कदम अडे़ रहे
मजबूर हुएे न जाने कितनी दफा, पर यु ही खडे़ रहे।
सुनकर हम शेरो की दहाड़, गिदड़ बिलों में पडे़ रहे
टस से मस न होने वाली, आजाद हिन्द की फौज है ये।
जीत के बिना तो रणक्षेत्र सूना है,
हार के चाहे जितने खजंर गडे़ रहें।
सलाम उन बर्फ की वादीयों का, और बहती धारों का
सलाम उन पहाडी़ घाटीयों का, और दिशाऔ चारों का।
वाह! मोह्ब्बत-ऐ-वतन जवान, जो बाप है गद्दारों का
ईन शेरों के क्या रोकेगी बहते आतकं की यें धाराऐं
ये काफिला बहता नीला सागर सा, न निशान किनारों का।
जन्म लेगें अपनों के लिये, ये तो खफा वतन के लिये
सफेद नहीं कफन तिरंगा चाहे मरते दफा तन के लिये।
जज्बात थोडे़ दबा दिये है, बस जज्बा वतन के लिये
क्या पिलाया था दुग्ध में शेरनी ने उस वक्त जो
डरता है जर हड्डियों का, और बुढापा इस तन के लिये।
रहें हिफाजत मेरे देश की, इस जान की परवाह नहीं
क्यों समझ रखा बस बागी हूँ मैं कोई लापरवाह नहीं।
उठती लहरे हैं जिगर में कोई पानी का ये प्रवाह नहीं।
मुझे चाहीये दुल्हन सिर्फ शहादत की, और बदोंरी में
राष्ट्र की धुन, कोई तालियों से वाह ! वाह !नही।