रामकथा
रामकथा
चैत्र शुक्ल में,
तिथि नवमी आयो l
शुभ घड़ी में,
जन्मे श्री रघुनाथ l
घर-घर में,
मंगल ध्वनि छाई l
तारण हार,
श्रीराम अवतरे l
हुए हर्षित,
मात-पिता समाज l
स्थापित किया,
धरा पर मर्यादा l
गए आश्रम,
गुरु से पाया ज्ञान l
एकाग्र मन,
लगाया वहाँ ध्यान l
ताड़का मारी,
प्रसन्न ऋषि गण l
अहिल्या तारी,
कियो पाषाण मुक्त l
मिथिला गये,
गुरु संग ले भ्राता l
धनुष तोड़ा,
गुरु आज्ञा पाकर l
प्रसन्न भई,
जनक सुता सीता l
वरा राम को,
सबका ले आशीषl
विवाह हुआ,
चारों भ्राताओं का भी l
मंगल छायो,
मिथिला अवध में l
श्री सीताराम,
लखन लिए संग l
वे गए वन,
चौदह बरस को l
सीता हरण,
मिला दारुण दुख l
मिलन हुआ,
भक्त हनुमान से l
राम सुग्रीव,
बन गए वे मित्र l
एक तीर से,
बाली मार गिराया l
राज तिलक,
सुग्रीव का कराया l
सीता खोज में,
वानरों को पठाया l
हनुमान को,
निज पास बुलाया l
दीया मुद्रिका,
सीता को यह देना l
पता लगा के,
जो हनुमत आए l
वानरों संग,
रामेश्वरम आए l
की शिव पूजा ,
भोले स्थापित किया l
मर्यादा हेतु,
सिंधु को मान दिया l
राम आज्ञा से,
नल नील भ्राता ने l
सिंधु में बांधा,
सेतु एक अनोखा l
पार सिंधू के,
सागर तिर डेरा l
मिले राम से,
रावण छोट भ्राता l
शांति प्रस्ताव,
लेकर तुम जाओ l
चेतावनी दे,
अंगद को पठाया l
अंगद पांव,
कोई हिला ना पाया l
शोर मचा जो,
युद्ध भूमि में फिर l
असुर बनें,
फिर काल के ग्रास l
मृत्यु से उन्हें,
कोई बचा न पाया l
अंत में राजा,
रावण आया फिर l
घोर छिड़ा है,
समर भूमि में युद्ध l
माया दिखाये
है कपटी रावण l
मायावती से,
कैसे वो जीत सके l
नाना प्रकार,
माया रचे रावण l
एक क्षण में,
राम माया तोड़ दे l
रावण संग,
राम खेल करे है l
दंभी रावण,
घमंड ना त्यागे है l
राम बसे हैं,
सीता के हृदय में l
राम हृदय है,
सीता छवि समाई l
ऐसी दशा में,
कैसे मारे रावण को l
जब बसी है,
रावण चित्त सीता l
चित्त से सीता,
रावण के निकली l
तब राम ने,
रावण को मारा है l
गूढ़ रहस्य,
इस मरण में है l
जिसने जाना,
हुआ राम दीवाना l
अयोध्या आए,
सीता राम लखन l
बजे बधावा,
अयोध्या नगर में l
उत्सव छाया,
सारे नगर में है l
दीप मालिका,
सब दीवाली माने l
रामराज्य की,
स्थापना हुई फिर l
सीताराम ने,
मर्यादा सिखाई है l