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Lokeshwari Kashyap

Action Inspirational

4  

Lokeshwari Kashyap

Action Inspirational

रामकथा

रामकथा

2 mins
310



 चैत्र शुक्ल में,

 तिथि नवमी आयो l

 शुभ घड़ी में,

 जन्मे श्री रघुनाथ l


 घर-घर में,

 मंगल ध्वनि छाई l

 तारण हार,

 श्रीराम अवतरे l


 हुए हर्षित,

 मात-पिता समाज l

 स्थापित किया,

 धरा पर मर्यादा l


गए आश्रम,

 गुरु से पाया ज्ञान l

 एकाग्र मन,

 लगाया वहाँ ध्यान l


 ताड़का मारी,

 प्रसन्न ऋषि गण l

 अहिल्या तारी,

 कियो पाषाण मुक्त l


 मिथिला गये,

 गुरु संग ले भ्राता l

 धनुष तोड़ा,

 गुरु आज्ञा पाकर l


 प्रसन्न भई,

 जनक सुता सीता l

 वरा राम को,

 सबका ले आशीषl


 विवाह हुआ,

 चारों भ्राताओं का भी l

 मंगल छायो,

 मिथिला अवध में l


 श्री सीताराम,

 लखन लिए संग l

 वे गए वन,

 चौदह बरस को l


सीता हरण,

मिला दारुण दुख l

मिलन हुआ,

भक्त हनुमान से l 


 राम सुग्रीव,

 बन गए वे मित्र l

 एक तीर से,

 बाली मार गिराया l


 राज तिलक,

 सुग्रीव का कराया l

सीता खोज में,

 वानरों को पठाया l


 हनुमान को,

 निज पास बुलाया l

 दीया मुद्रिका,

 सीता को यह देना l


 पता लगा के,

 जो हनुमत आए l

 वानरों संग,

 रामेश्वरम आए l


 की शिव पूजा ,

 भोले स्थापित किया l

 मर्यादा हेतु,

 सिंधु को मान दिया l


 राम आज्ञा से,

 नल नील भ्राता ने l

 सिंधु में बांधा,

 सेतु एक अनोखा l


 पार सिंधू के,

 सागर तिर डेरा l

 मिले राम से,

 रावण छोट भ्राता l


शांति प्रस्ताव,

लेकर तुम जाओ l

चेतावनी दे,

अंगद को पठाया l


 अंगद पांव,

 कोई हिला ना पाया l

 शोर मचा जो,

 युद्ध भूमि में फिर l


 असुर बनें,

 फिर काल के ग्रास l

 मृत्यु से उन्हें,

 कोई बचा न पाया l


अंत में राजा,

 रावण आया फिर l

 घोर छिड़ा है,

 समर भूमि में युद्ध l


 माया दिखाये

 है कपटी रावण l

 मायावती से,

 कैसे वो जीत सके l


 नाना प्रकार,

 माया रचे रावण l

 एक क्षण में,

 राम माया तोड़ दे l


 रावण संग,

 राम खेल करे है l

 दंभी रावण,

 घमंड ना त्यागे है l


राम बसे हैं,

 सीता के हृदय में l

राम हृदय है,

सीता छवि समाई l


ऐसी दशा में,

 कैसे मारे रावण को l

 जब बसी है,

 रावण चित्त सीता l


 चित्त से सीता,

 रावण के निकली l

 तब राम ने,

 रावण को मारा है l


 गूढ़ रहस्य,

 इस मरण में है l

 जिसने जाना,

 हुआ राम दीवाना l


 अयोध्या आए,

 सीता राम लखन l

 बजे बधावा,

 अयोध्या नगर में l


 उत्सव छाया,

 सारे नगर में है l

 दीप मालिका,

 सब दीवाली माने l


रामराज्य की,

 स्थापना हुई फिर l

 सीताराम ने,

 मर्यादा सिखाई है l



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