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Lokeshwari Kashyap

Drama Inspirational

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Lokeshwari Kashyap

Drama Inspirational

मनमंदिर छवि छाए रही

मनमंदिर छवि छाए रही

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मेरे हिय पीर भरी है, विरह वेदना जला रही l

कैसे तुझे बताऊं मैं, तेरी यादें सता रही l

श्याम तुम तो नहीं आये, तेरी यादें रुला रही l

पवन तेरे मधुर वेणु, की धुन यहाँ तक ला रही l


गले शोभित वैजयंती, मोर पंख लहराए रही l

पंकज नयन चितचोर हैं, सबका चित्त चुराए रही l 

जो तेरा दरस मिले हैं, अधर मुस्कान छाए रही l

तुझे छोड़ किसे भजूँ कृष्ण, मन मंदिर छवि छाए रहीl


दीवानी वन -वन भटके, कृष्ण कृष्ण जाप कर रही l

कृष्णा प्रेम हुआ जबसे, नाम की माला जप रही l

मिलन की आस हिय में लिए, तप के ताप में जल रही l

बैरागी मन जोगन हो, तन मन की सुध भुला रही l


मुझको खुद में मिला लो न, दूध में पानी मिल रही l

मुझमें मैं न बस तुम दिखो, पुष्प में सुगंध बस रही l

आत्मा परमात्मा एक हों, जैसे रवि किरण एक रही l

दो नहीं मिल के होए एक, जल से जीवन मिली रही l


अभी न आए कब आओगे, नयन भी अब पथरा रही l

नदी तीर नैया मेरी, आ हिचकोले खाए रही l

तुम बन जाओ माझी जी, भंवर नाव डुबाय रही l

हृदय प्रेम दीप जला के, आरती तेरी गा रही l


कब आओगे मोहन तुम, प्रेम भाव से बुला रही l

होगा मिलन हमारा अब, यह भाव मन हर्षा रही l

मन अधीर हुआ जा रहा, मिलन घड़ी पास आ रही l

खोल पिंजरे के द्वारे, थाम मुझको मैं आ रही l



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