मनमंदिर छवि छाए रही
मनमंदिर छवि छाए रही


मेरे हिय पीर भरी है, विरह वेदना जला रही l
कैसे तुझे बताऊं मैं, तेरी यादें सता रही l
श्याम तुम तो नहीं आये, तेरी यादें रुला रही l
पवन तेरे मधुर वेणु, की धुन यहाँ तक ला रही l
गले शोभित वैजयंती, मोर पंख लहराए रही l
पंकज नयन चितचोर हैं, सबका चित्त चुराए रही l
जो तेरा दरस मिले हैं, अधर मुस्कान छाए रही l
तुझे छोड़ किसे भजूँ कृष्ण, मन मंदिर छवि छाए रहीl
दीवानी वन -वन भटके, कृष्ण कृष्ण जाप कर रही l
कृष्णा प्रेम हुआ जबसे, नाम की माला जप रही l
मिलन की आस हिय में लिए, तप के ताप में जल रही l
बैरागी मन जोगन हो, तन मन की सुध भुला रही l
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मुझको खुद में मिला लो न, दूध में पानी मिल रही l
मुझमें मैं न बस तुम दिखो, पुष्प में सुगंध बस रही l
आत्मा परमात्मा एक हों, जैसे रवि किरण एक रही l
दो नहीं मिल के होए एक, जल से जीवन मिली रही l
अभी न आए कब आओगे, नयन भी अब पथरा रही l
नदी तीर नैया मेरी, आ हिचकोले खाए रही l
तुम बन जाओ माझी जी, भंवर नाव डुबाय रही l
हृदय प्रेम दीप जला के, आरती तेरी गा रही l
कब आओगे मोहन तुम, प्रेम भाव से बुला रही l
होगा मिलन हमारा अब, यह भाव मन हर्षा रही l
मन अधीर हुआ जा रहा, मिलन घड़ी पास आ रही l
खोल पिंजरे के द्वारे, थाम मुझको मैं आ रही l