जिंदगी का तन्हा पल
जिंदगी का तन्हा पल


कभी जब खुद से बातें करने का मन करता है।
भीड़, शोरगुल से दूर अपने आप में खोने का मन करता है।
अपने भीतर झांकने, खुद को आंकने का मन करता है l
व्यस्त जिंदगी से खुद के लिए दो पल चुराने का मन करता है।
तब हमें सुकून देता है जिंदगी का तन्हा पल...........
कभी जब गला रूंधा और दिल उदास होता है।
खुद से, अपनों से उमड़ा शिकवों का सैलाब होता है।
जब दिल का दर्द धीरे-धीरे अश्कों में पिघल रहा होता है।
कोई अपना हमारे अश्कों से दुखी ना हो, दिल चाहता है।
तब हमें सुकून देता है जिंदगी का तन्हा पल...............
बचपन की शरारतें और यादें ऊर्जा से भर देती है l
लड़कपन की इतराती, इठलाती यादें दिल को गुदगुदाती है।
सखी सहेलियों संग हंसी ठिठोली की बात
ें जब याद आती है।
दिल में ऊर्जा, उत्साह और खुशियाँ भर देती है।
इन यादों में खो जाने का वक्त है जिंदगी का तन्हा पल.......
कभी हमें गहरी निराशा व अवसाद में धकेल देती है l
जिंदगी खुद की खुद को ही बोझ सी लगने लगती है।
जब कोई हमारा अपना हमारे साथ नहीं होता है l
जिंदगी का दुख भरा पल याद आता और रुलाता है l
तब टीस और पीड़ा से भर जाता है जिंदगी का तन्हा पल...........
जग रूठे हुए प्रियतम को अदाओं से मनाना होता है l
जब अपनों के मन की गांठ धीरे से खोलना होता है।
जब किसी समस्या को समझना और सुलझाना होता है l
जब प्रेमी आत्मा को परमात्मा से मिलाना होता है।
तब लाजमी होता है जिंदगी में तन्हा पल........