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V. Aaradhyaa

Abstract Drama Tragedy

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V. Aaradhyaa

Abstract Drama Tragedy

घना तिमिर पसर गया

घना तिमिर पसर गया

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छा गया चारों ओर घना तिमिर पसरकर,

अब अँधेरे को चीरकर निकलेगा दिनकर !


एक पहेली इस जीवन की कैसे ये सुलझाएं,

अपने मन के अंधकार को कैसे अब मिटाएं !


गलत, सही अपना मन भली-भांति जानता है,

फिर भी लालच में गलत को सही मानता है !


जो भी संभव हो सकता है, ऐसा पथ अपनाएं,

कामना पूर्ति की आकांक्षा में मन डूबा जाए !


छोड़ बुराई की जंजीरें कैसे खुद को बचाएं,

अपने मन के अंधकार को कैसे अब मिटाएं!


कैसे चलें दुर्गम पथ पर मुझको अब बतलाओ,

मेरे मन की सुनो, नई राह तो तुम दिखलाओ!


लक्ष्य आकांक्षा ने सच का पथ ठुकराया।

हमारे निर्मल मन में अंधकार का दानव छाया।।


अंधकार के इस दानव को कैसे मार भगाये।

अपने मन के अंधकार को कैसे हम मिटाएं।।



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