प्रेम है मैदान ए जंग नहीं..!
प्रेम है मैदान ए जंग नहीं..!
प्रेम में वीरता दिखाने की
जरूरत नहीं,
यह एहसास और समर्पण
की वस्तु है,
बस हौले से
मखमली स्पर्श चाहिए उसे
अपना स्व स्वाहा कर
समर्पित होना पड़ता है प्रेमी को
हल्के से छू लो प्रेम को
वो तुमको पूर्णतः प्राप्त होगा
वो कहते हैं ना
रोटी गोल चाहिए तो
बेलन को हल्के हल्के घुमाओ
जोर लगाने पर वो
कायनात के नक्शे दिखाएगी
बाँध लो प्रेम को
काले धागे सा अपनी कलाई
अपने आत्मा पर
प्रेम में दोनों को एक दिखाना
ना तुम उससे अलग
ना वो तुमसे भिन्न
अगर ऐसा कर सकते हो
तो ही आना इस गली में
स्वागत करूँगी
समय और उम्र की कोई पाबंदी
जितना भी वक़्त लो
कोई भी उम्र हो
आना तो केवल समर्पित भाव से
पूर्ण समर्पण पाओगे मुझसे भी...!
प्रेम है कोई
मौदन-ए-जंग तो नहीं
जो...!!