क्या था क्या हुआ
क्या था क्या हुआ
मेरे तकिये -चादर का एक गीत सुनाता हूँ जब भी ऐतराज़ की रौशनी में तुझे भूलने के करीब होता थासब फासला तय कर कोई फरिश्ता सब सच बता जाता है
कागज़ के टुकड़ों -सा बिखरा हुआ था तुझसे जुड़कर इंतज़ार वाली चिट्ठी हुआ धूल की आंधी-सा बेकार उड़ता था तेरी आहात की बूंदों -सा गिरकर पेड़ की मिटटी हुआ
जब भी अपनी राह भूल जाता था मेरा सफर और मेरी मंज़िल थी तेरी आँखों में अंदर एक नज़र बस मार लेता हूँ
तेरी बातों के ईंट पत्थर से अपना घर बनजाता था मैं और अब उस घर में ही मैं रहना चाहता हूँ .
