प्रेम: सवाल या यथार्थ
प्रेम: सवाल या यथार्थ
क्या रेत कभी रेगिस्तान से सवाल करती है
क्यों तुम्हें सब रूखा -सूखा , शून्य-सा नीरस ही पसंद है
क्या दरिया कभी समंदर से सवाल करता है
क्यों तुम्हें सब गला, गीला -भीगना ही भाता है
फिर क्यों हमारा प्रेम ज़िद्दी इजाज़त से पूछता है
क्यों अपने अस्तित्व की वास्तविकता का प्रमाण
किसी दूजे से तू मांगता है ।
