बेटियाँ भी तो करतीं हैं कमाल
बेटियाँ भी तो करतीं हैं कमाल
बेटियाँ भी तो करती हैं कमाल
सिसकियों से सब करती हैं बयान
मासूमियत से करतीं सौ सवाल
घर-आँगन में ढूंढती अपना अक्स।
रीति-रिवाजों की चढ़ती हैं बलिवेदी
नन्ही सी कली जब भी बनती फूल
अनजान बंधन में वो करती सफर
पराई हैं वो भी तो करती महसूस।
बचपन से बुढ़ापे तक करतीं समर्पण
हर दुख को खुद में करतीं अंगीकार
सोचिए !कैसे जीवन करती निर्वहन?
माता-पिता की वो भी तो होती अंश।
मायके में अतीत अपना आती छोड़
दो कुल की धुरी बनकर जाती हैं रह
संदेह के दायरे आ जाती हैं फिर भी
डोली व अर्थी का भी करती ख्याल।
कन्यादान महादान का रखती मान
दिल में न जानें वो क्या करती दफन?
रह जाती हैं बनकर मोम की गुड़िया
दर्द में पिघलती वो फिर कतरा-कतरा।
पत्थर नहीं वो भी रखती नाजुक दिल
माँ कौशल्या यशोदा सीता जब बनती
राम-कॄष्ण व लव-कुश को देती जन्म
संस्कारित बन धरा का करतीं श्रृंगार।
कैकेयी मंथरा पूतना रूप करतीं हैरान
दुनिया की नजरों में पिंजरबद्ध हैं पक्षी
तन्हाई में अक्सर खुद से करतीं बात
उलझनों की झुरमुट में रहती हर पल।
देखती हैं धरती से आसमान की ओर
बहन बेटी व माँ होने पर करतीं हैं गर्व
गम की आँधी-तूफ़ां से लड़ती पल-पल
होती शोभा सरोज निज सरोवर की।।