कही रुप कही छांव
कही रुप कही छांव
कहीं शहर कहीं गांव,
रिश्तो के उखड़े पांव।
फिर नहीं कहीं ठाव,
कहीं धूप कहीं छांव।
सुख-दुख का सफर,
धूप छांव के है डगर।
दौड़ती न कागजी नाव,
कहीं धूप कहीं छांव।
है भगवान के माया
कहीं धूप कहीं छाया
कहीं प्रकृति ने रुलाया
कभी सबको हंसाया।
आए प्रेम के जगाए भाव,
कहीं धूप कहीं छांव।