ज़िन्दगी न जाने क्यों???
ज़िन्दगी न जाने क्यों???
ज़िन्दगी, तू कभी जानी, कभी अनजानी, सी लगती है,
ये बड़ी अजीब बात है, कि कई जन्मो की मुलाक़ात है,
फिर भी जाने क्यों? कभी दूर, कभी करीब, सी लगती है।
ज़िन्दगी, तू कभी जानी, कभी अनजानी सी लगती है।
लगती है तू, की जैसे ख़्वाब है कोई, मेरा देखा हुआ,
कहता है दिल, कई जन्मो से है, तेरा-मेरा राब्ता यहाँ,
फिर भी जाने क्यों? कभी सच्ची, कभी झूठी सी लगती है।
ज़िन्दगी, तू कभी जानी, कभी अनजानी सी लगती है।
किस को ख़बर, सबसे पहले मिले थे, हम दोनों कहाँ,
कब से नज़र, ढूंढ रही है तेरे कदमों के वो पहले निशाँ,
फिर भी जाने क्यों? कभी पायी, कभी खोई सी लगती है।
ज़िन्दगी, तू कभी जानी, कभी अनजानी सी लगती है।
कितने जनम, बीत गये हैं, तुम्हें समझने-समझाने में,
हमने तुम्हें, प्यार किया है, हर जन्म में ,हर ज़माने में,
फिर भी जाने क्यों? कभी सीधी, कभी उलझी सी लगती है।
ज़िन्दगी, तू कभी जानी, कभी अनजानी सी लगती है।