नवदुर्गा
नवदुर्गा
घर गिरिराज के जन्मी कन्या
शैलपुत्री कहलाती है
शिव-शंकर का ध्यान लगा, जप-तप का मार्ग अपनाती है||
शाक-पत्तियों का भोजन करती
जिसे त्याग बाद में देती है
निर्जल-निराहार व्रत है करती, माँ ब्रह्मचारिणी हो जाती है||
इहलोक परलोक को देती
चंद्रघंटा माँ चंद्रमा शीश सजाती है
अस्त्र-शस्त्रों से रहे विभूषित, शान असुर-दैत्य, दानव की धूल मिलाती है||
कूष्माण्डा बन ब्रह्मांड रचाया
अंधकार को दूर भगाती है
दशों दिशाओं को करे आलौकित, आदिशक्ति माँ एकरूपता समझाती है||
मूढ़ भी बन जाते है ज्ञानी
जब कृपा माँ बरसाती है
नवचेतना का निर्माण है करती, जब स्कन्द माता बन जाती है||
ब्रज मण्डल की अधिष्ठधात्री देवी
पीड़ा, दुःख-संताप मिटाती है
परम पद को देने वाली, माँ कात्यायनी रूप दिखाती है||
भयंकर रूप और बिखरे बाल है
भूत-पिशाच को दूर भगाती है
असुरों का संहार है करती, बन माँ कालरात्रि जब जाती है||
अभय मुद्रा धारण करती
गौर वर्ण हो जाती है
सदाशिव को प्रसन्न करती, माँ महागौरी उन्हें पति रूप में पाती है||
अष्ट सिद्धियों की स्वामिनी माता
दे अमोघ सिद्धियों से मान बढ़ाती है
धन-वैभव से झोलियाँ भरती, वही सिद्धिधात्री माँ कहलाती है||