उसके स्पर्श से अग्नि खिली अब था उसका श्रृंगार वही वो बनी सीता, वो हुई सती। उसके स्पर्श से अग्नि खिली अब था उसका श्रृंगार वही वो बनी सीता, वो हुई सती।
रसिक मन मेरा तेरी सुंदरता का क्या करे बखान... तुम कामिनी हो, तुम स्वामिनी हो, तुम नंदिनी हो... कंचन ... रसिक मन मेरा तेरी सुंदरता का क्या करे बखान... तुम कामिनी हो, तुम स्वामिनी हो, तु...
तेरी इच्छा से इस जगत में वसंत आए-जाए, तेरी इच्छा से ही माते, श्वास चले हर जीव के, तेरी इच्छा से इस जगत में वसंत आए-जाए, तेरी इच्छा से ही माते, श्वास चले हर जी...