कैसे मुंह दिखाऊँगी जब दोगे घूँघट उघारी कैसे मुंह दिखाऊँगी जब दोगे घूँघट उघारी
उसके स्पर्श से अग्नि खिली अब था उसका श्रृंगार वही वो बनी सीता, वो हुई सती। उसके स्पर्श से अग्नि खिली अब था उसका श्रृंगार वही वो बनी सीता, वो हुई सती।
स्वभाव पावक का दाह देती है जला देती है स्वभाव नीर का. स्वभाव पावक का दाह देती है जला देती है स्वभाव नीर का.
शेष रात को सुहाग की कर ले एकाकिनी क्यूँ रात कटे! शेष रात को सुहाग की कर ले एकाकिनी क्यूँ रात कटे!
मधुर प्रेम के प्रणय पाश में झूम उठे मनमीत मधुर प्रेम के प्रणय पाश में झूम उठे मनमीत