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Bhavna Thaker

Romance

4  

Bhavna Thaker

Romance

श्रृंगार रस

श्रृंगार रस

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शेष रात को सुहाग की कर ले एकाकिनी क्यूँ रात कटे,

छीजते उर में आज हम भर लें झंझावाती इश्क की धार।


साथ तेरा में चाहती हूँ ज्यूँ मेघ को चातक तरसे,

सपनों की इस सेज पर बैठे सुधि खो रही मैं आज।


मुखरित कर दे प्रीत को साजन मादक भर उच्छ्वास,

साँस-साँस मेरी सुलग उठे बन बिछ सौरभ अनुराग।


मधु घड़ियों को रोक लो तुम स्वर लहरी मेरी तड़प रही,

क्षण-क्षण में हम भर लें चलो शीत चुम्बन की बौछार।


प्रीत की पावक लहर उठी उर तन-मन तड़पे चपला से,

अपलक आनन तकते बीते दिन मेरे सूनी रात।


करो श्रिंगार मेरा होठों से तुम पीठ पर प्रेम की चरम लिखों

अंकित कर लो खुद को मुझमें रच कर मिलन मधु स्नात। 


चितवन का चलो सेतु रच ले चूमकर मुझको संदल कर दे,

शर्मिले से नैंनो को देकर इश्क का तू आह्वान।


बुत सी मैं बन जी रही थी बेसुध सा ये तन था,

बोए तुमने मोती मंजूल चाहत की लड़ियों से गूंथा मुझ सूना था संसार।


मृदु सी मेरी गीली पलकें चुमते कटे तुझ रात,

कोष से आँचल भर दो पाकर खुद को पूर्ण मैं कर लूँ तुझ इश्क का ये उपहार।

  

हलचल खून में ऐसे भर दो शूल चुनों मेरे तन से,

तृषित तेरी काया को धर ले मेरे तन की परत पे नाथ।


मंद मलय की छाँव में छत पर तारे गिनते रैन कटे,

प्रेम की बारिश में संग भिगते एकाकार हम रच लें।


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