कितना चाहा स्वयं को दर्पण यूँ ना छुपा तू जानता है उसे दर्पण तू बता..? कितना चाहा स्वयं को दर्पण यूँ ना छुपा तू जानता है उसे दर्पण तू बता..?
कौन है तुम्हारे सिवा सिवा तुम्हारे कौन है। कौन है तुम्हारे सिवा सिवा तुम्हारे कौन है।
वातायन में खड़ी खड़ी गुजार दी थी मैंने कई वत्सर वातायन में खड़ी खड़ी गुजार दी थी मैंने कई वत्सर
प्रेम गीत सा प्रेम मीत सा प्रेम से भरा मेरा प्रेम। प्रेम गीत सा प्रेम मीत सा प्रेम से भरा मेरा प्रेम।
खामोशी भरी धड़कनों से उनको मनाना एक दिन। खामोशी भरी धड़कनों से उनको मनाना एक दिन।
उस भीड़ में जो मेरा निर्जर था मन को झकझोर देता है उस भीड़ में जो मेरा निर्जर था मन को झकझोर देता है