स्वभाव
स्वभाव
चराचर जगत
जड़ या चेतन
प्रकृति या पुरुष
अलग अलग स्वभाव
अलग अलग पहचान
स्वभाव पावक का
दाह देती है
जला देती है
स्वभाव नीर का
दाह को ठंडक देती
शीतलता देती
फिर बदले क्यों स्वभाव
पावक चंदन बना
नीर अग्नि बना
सिय न जलीं अग्नि में
चंदन सम अग्नि हुई
सिय के सतीत्व की साक्षी अग्नि
राम उतर सरयू नीर में
भस्म तन
निज लोक पहुंचे
सत्य ही कहा
सिय आग में न जलीं
राम नीर में जल गये
प्रकृति के दो रूप
एक अग्नि, एक नीर
स्वभाव बदल गये
पर क्यों, प्रश्नचिन्ह।
