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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy Inspirational

4.5  

Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy Inspirational

मजदूर

मजदूर

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दुनिया मे प्रत्येक आदमी होता, एक मजदूर है।

यकीन न हो तो देख लो अपना घर कहां दूर है।।


जिसे पुरुष को गर्व है, कि वो एक मजदूर है।

वो इस दुनिया मे कभी नही होता मजबूर है।।


वही आदमी बन सकता है, साखी मजदूर है।

जिसको नही किसी प्रकार का कोई गुरुर है।।


आज की दुनिया की हवा हुई, बहुत मगरूर है।

मजदूरों पर ढहा रही सितम, होकर बहुत क्रूर है।।


परिश्रम तो मजदूर करते यहां पर भरपूर है।

फिर भी दो वक्त के खाने के लिये मजबूर है।।


पैसेवाले लोग बहुत ही, यहां पर मद में चूर है।

करते है, घृणा मजदूरों से, जैसे वो कोई भूत है।।


वो भूल गये है, मजदूरों के कारण हुए, मशहूर है।

गर न होते मजदूर, क्या होते, महल, बंगले, हुजूर है।।


गर न हो, मजदूर क्या रोशनी होती, कोहिनूर है।

क़द्र करो, इनके बगैर तो दिल्ली कोसों दूर है।।


मान करो मजदूरों का, दुआएं मिलेगी भरपूर है।

इनके आशीष से तुझे मंजिल मिलेगी जरूर है।।


मजदूरों के कपड़ों पर न जाना, वो मैले जरूर है।

इनके जैसा नही कोई जिंदादिल इंसान सुदूर है।।


मजदूरों ने मानवता, कर्म का सजाये रखा नूर है।

वो न होते, कहाँ से लाते कृतज्ञता, कर्म लौ हुजूर है।।


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