सन्नाटा फैला है
सन्नाटा फैला है
महामारी खा गई साहित्य योद्धा,
नजर आता यह कैसा झमेला है,
अश्रु बहा रहा हैं आज जग सारा,
साहित्य जगत में सन्नाटा फैला है।
गीतों के राजा गये छोड़कर जग,
कुंवर बेचैन नाम वो कहलाते थे,
पढ़ते जिनका गम भरा काव्य तो,
बस आंखों में आंसू आ जाते थे।
गंगा प्रसाद विमल छोड़ गये जग,
हादसे ने ले ली उनकी भी जान,
रोहित सरदाना पत्रकार चल बसे,
जिनकी विश्व भर में होती पहचान।
नरेंद्र कोहली का निधन हो चुका,
और गये जग से ही कलीम उर्फी,
कुलवंत भी गये जगत को छोड़कर,
कुमार विमल गये जो बने हैं सुर्खी।
भगवती प्रसाद देवपुर चले गये हैं,
राहत इंदौरी यूं चले गये मुख मोड़,
कितने कवि लेखक चले गये अब,
साहित्य जगत में अकेला ही छोड़।
देते आज श्रद्धांजलि साहित्य को,
या महामारी को देते हम ये दोष,
कितने आंसू बह निकलते मन से ,
चले गये उनका हमको अफसोस।
कहीं नजर उठाकर जब देख लो,
मौन व सन्नाटा ही छाया मिलता,
महामारी परेशान कर रही जन को,
खुशियों का अब फूल ना खिलता।
हर क्षेत्र के महारथी गये धड़ाधड़,
कोई उपाय नजर नहीं आता आज,
वक्त अब दूर नहीं रहा लगता है,
भारत देश पर होगा जग को नाज।
सन्नाटा ही सन्नाटा छाया है अब,
दर्द दे गये कितने जहां के लोग,
अपने रो रहे पराये भी रो रहे हैं,
कितना निष्ठुर फैला जहां में रोग।
नामवर सिंह गये, केदारनाथ गये,
सन्नाटे में छोड़ गये कितने इंसान,
कितने ही कवि, लेखक चले गये,
धरा पर होती थी अपनी पहचान।
सन्नाटा कहीं और नहीं बढ़ जाए,
वक्त अभी कर ले कुछ वो काम,
नियमों पर अगर चलते रहोगे तो,
समय दूर नहीं फिर हो जाए नाम।।