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Dr Hoshiar Singh Yadav Writer

Tragedy

4  

Dr Hoshiar Singh Yadav Writer

Tragedy

विद्यार्थी

विद्यार्थी

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रोते हैं विद्यार्थी, बढ़ा पढ़ाई बोझ,

मोटी पोथी पढ़ते, घट गया ओज।

मां बाप चाहते, बच्चा हो सफल,

पैसे बहाते सदा,जाये न निसफल।।


बढ़ गई स्पर्धा, कर नहीं सके क्रेक,

दिनरात एक करे,फिसड्डी है रैंक।

कुछ तो फांसी खा रहे,हारके बेचारे,

उचित समझते वो, प्रभु के बस द्वारे।।


कंप्यूटर सा दिमाग है,फिर भी जीरो,

न जाने कैसे बनते, इस जग में हीरो।

रास्ता नहीं सूझता,उस पर मिले दाब,

क्या करें कोई बताये,विद्यार्थी जनाब।।


आने वाले समय में,प्रभु ही रखवाला,

बोलना कठिन हुआ,मुंह लगता ताला।

पता नहीं कैसा युग,आना है यूं बाकी,

शिक्षा की अभी तक, नहीं बनी फांकी।।


बचा लो स्पर्धा से,कितने कहते लोग,

पर ऊंचे ख्वाब का,लगा हुआ है रोग।

जीवन पूरा हो सके, सोचकर घबराते,

मिले सुखद समाचार, कहलाए संजोग।।



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