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सुनील त्रिपाठी

Tragedy Inspirational

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सुनील त्रिपाठी

Tragedy Inspirational

पीर दूभर है किसी की जान पाना

पीर दूभर है किसी की जान पाना

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नींद से यदि इस जगत को है जगाना।

लेखनी को फिर पड़ेगा   ही चलाना।


छंद मय साहित्य सागर की तरह है।

ढूँढ लो गहराइयों   में है खजाना।


पाँव में अपने  न जब तक हो बिवाँई।

पीर दूभर है   किसी की जान पाना।


घोर संकट में   उसे ही तुम पुकारो।

चाहते हो जिस किसी को आजमाना।  


कर भले लो  रेशमी परिधान धारण।

पर हँसी तुम चीथड़ों की मत उड़ाना।


घाव मुझको मत नया दो एक फिर से।

सूखना बाकी अभी तक है पुराना।


सत्य कहने का अगर साहस न हो तो।

व्यर्थ कविता  काव्य मंचों पर सुनाना।


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